निर्जला एकादशी : समाग्री, सामान्य पूजा विधि व व्रत संकल्प
•Posted on May 29 2023
।।ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः।।
भारतवर्ष में पंचांगानुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। ज्येष्ठ माह की इस एकादशी को वर्ष भर की २४ एकादशियों में अति उत्तम माना गया है। इस व्रत में साधक को एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्यास्त तक जल ग्रहण न करने का विधान है इसी कारण इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है की जो व्यक्ति अन्य एकादशी का व्रत नहीं रख पाता वह केवल निर्जला एकादशी का व्रत रखे तो उसे सम्पूर्ण एकादशीयों के व्रत का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को विधि-विधान पूर्ण करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होने के साथ ही समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
निर्जला एकादशी का महत्व
जो भी व्यक्ति निर्जला एकादशी व्रत का संकल्प पूर्ण करता है उसे सभी तीर्थ स्थानों में किये गए स्नान, दान आदि का पुण्य प्राप्त होता है।
जो भी व्यक्ति इस व्रत को रखता है उसे निश्चित रूप से भगवान विष्णु के आशीर्वाद से मनोवांछित फल प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
व्यक्ति द्वारा इस दिन एकादशी की पूजा संपन्न कर हरि-हर का स्मरण कर भोज कराने से मोक्ष की प्राप्ति होती है व साथ ही भूलवश किये गए पापों का समूल नाश होता है।
निर्जला एकादशी के इस शुभ दिन दान दक्षिणा का विशेष महत्व है। इस दिन किये गए गोदान, वस्त्र दान, फल व भोजन आदि के दान से मनुष्य को जीवन में सुख समृद्धि, धन-धान्य, बल-बुद्धि आदि की प्राप्ति होती है।
ध्यान रहे - जिस भी वस्तु का दान आप कर रहे है वह आपके पूर्ण मन से हो न की किसी दबाव ,स्वार्थ व किसी पंडित एवं ब्राह्मण ने कहा है इसलिए करना पड़ रहा आदि भावों से रहित हो, क्योंकि इस प्रकार से किया गया दान कभी फलदाई नहीं होता।
महाभारत काल में निर्जला एकादशी
महाभारत काल में वेदव्यास जी द्वारा भीम को बताई गई निर्जला व्रत अर्थात समस्त व्रतों में श्रेष्ठ एवं समस्त एकादशियों में उत्तम व्रत की महिमा ;
पाण्डव पुत्र भीम ने महामुनि वेदव्यास जी से पूछा - हे ज्ञानियों के ज्ञानी महाज्ञानी मेरे मन में एक प्रश्न है जो सदैव मुझे व्याकुल करता है। कृप्या कर आप मेरी इस व्यथा का हल करें। मेरे चारों भ्राता; युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव व माता कुंती एवं द्रोपदी एकादशी के अवसर पर कदापि भोजन ग्रहण नहीं करते और ऐसा करने को वह मुझे भी कहते हैं ! परन्तु आप तो जानते हैं की मैं अधिक समय तक भूखा नहीं रह सकता परन्तु दान- दक्षिणा, पूजा अर्चना करने में रूचि रखता हूँ। अब कृपा कर हे महामुनि मुझे ऐसा उपाय बताएं जिससे बिना उपवास किये मुझे एकादशी के व्रत का फल प्राप्त हो। यहाँ व्यास जी कहते हैं, हे कुंती पुत्र भीम सम्पूर्ण वर्ष में केवल एक ही व्रत ऐसा है जो सम्पूर्ण वेदों के अनुसार सर्वोत्तम है जिसे निर्जला एकादशी कहते है इसमें फलाहार ग्रहण करने के पश्चात् दूध ग्रहण करने का विधान है परन्तु ध्यान रहे इस व्रत में जातक द्वारा जल ग्रहण करना निषेध है जिस कारण इसे निर्जला की संज्ञा दी गई है। यह व्रत अपने आप में सर्वश्रेष्ठ कहलाया जाता है क्यूँकि केवल इस व्रत को विधि विधान से पूर्ण करने पर अन्य एकदाशिओं पर किये गए व्रत का फल प्राप्त होता है। इसे (निर्जला एकादशी) मनुष्य न केवल वर्तमान समय में अपितु कलियुग में भी मोक्ष प्राप्ति एवं पापों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए करेगा।
निर्जला एकादशी सामग्री
सामग्री:- सर्वप्रथम एक पूजा थाली तैयार करें जिसमें दीपक, धूप, रोली, चावल, पुष्प, तुलसी, फल, जल से भरा कलश, कलावा, लौंग, इलाइची,सुपारी, जनेऊ, चन्दन विष्णु जी ली प्रतिमा, चौकी, आसान, हल्दी, कपूर, पंचामृत, नारियल पकवान या अन्य प्रसाद आदि सम्मिलित करें।
भगवान विष्णु को समर्पित इस व्रत की पूजा विधि को संपन्न करना अत्यधिक सरल है। भक्त इस दिन प्रातःकाल उठकर स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर पीले या हल्के वस्त्र धारण करें,भगवान विष्णु के समक्ष शीश नवाकर व्रत संकल्प लें व उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
निर्जला एकादशी संकल्प
“मैं (आपका नाम) आपकी उपासना हेतु यह व्रत रखना चाहता हूँ कृपा कर मुझे सामर्थ्य प्रदान करें की मैं निर्जला एकादशी के व्रत को क्रोध, पाप व लालच से मुक्त होकर पूर्ण कर सकूँ।”
पूजा विधि प्रारंभ करने से पूर्व
पूजा स्थल को गंगा जल से शुद्ध कर एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर भगवान गणेश एवं विष्णु की प्रतिमा या चित्र को उत्तर या पूर्व दिशा में मुख करते हुए स्थापित करें।
एक जल से भरा कलश लें उस पर रोली व चन्दन से अपने दाहिने हाथ की अनामिका ऊँगली से स्वस्तिक बनायें, थोड़े से अक्षत लें उस पर कलश को स्थापित कर 5-7 आम या अशोक वृक्ष के पत्ते रखें। अब एक नारियल पर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करते हुए मौली लपेटें तत्पश्चात इस नारियल को कलश पर रखें।
दो सुपारी लें जिसमें श्री गणेश एवं श्री अम्बिका के स्वरुप की कल्पना करते हुए अपनी दाहिने हाथ की अनामिका से तिलक लगाएं।
पूजा विधि
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सर्वप्रथम भगवान गणेश का स्मरण करते हुए भगवान विष्णु का ध्यान करें उनका आवाहन करें।
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भगवान का अभिषेक कर तुलसी एवं पुष्प अर्पित करें।
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रोली, चावल या चन्दन का तिलक कर कलावा चढ़ाएं।
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मंत्रों का जाप करते हुए धूप व दीप जलाएं।
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भगवान का पकवान व अन्य प्रसाद समाग्री से भोग लगाएं।
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ध्यान रहे पूजा के समय अन्य विचारों को मन में न आने दें।
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व्रत संकल्प लेने वाले भक्त निर्जला एकादशी की कथा का श्रवण करें।
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सर्वप्रथम भगवान गणेश की आरती करें तत्पश्चात भगवान विष्णु की भक्ति से ओत-प्रोत प्रार्थना, मंत्र, चालीसा व आरती का पाठ करें।
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अंत में समस्त परिवार जन को प्रसाद पान कराकर इस पवित्र पूजा विधि का समापन करें।
क्या न करें
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इस विशेष दिन तुलसी या अन्य पौधे एवं वृक्ष को क्षति न पहुँचाएँ ।
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किसी भी व्यक्ति के लिए अभद्र टिप्पणी का प्रयोग न करें।
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ऐसे कार्यों में भाग न लें जो हिंसा के मार्ग की ओर जाता हो।
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धूम्रपान व मांस मदिरा से दूर रहें।
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इस शुभ दिन किसी भी जीव व प्राणी को हानि न पहुँचाए।
योगि
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