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शुक्ल पक्ष में प्रदोष व्रत का महत्व

Posted By ServDharm

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Posted on March 09 2023

आदिकाल से भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत का सनातन धर्म में विशेष स्थान रहा  है। पंचांग अनुसार यह प्रत्येक माह में दो बार कृष्ण पक्ष तथा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि (तेरस) को ठीक उसी प्रकार मनाया जाता है, जैसे एकादशी मनाई जाती है, परन्तु यहाँ आराध्य रूप में विष्णु की महिमा का गुणगान किया जाता है तो वहीं प्रदोष व्रत में भगवान शिव को आराध्य रूप में पूजा जाता है। 

इस दिन प्रदोष काल का अत्यधिक महत्व होता है यहाँ प्रदोष काल से तात्पर्य उस समय अवधि से है जो सूर्यास्त के पश्चात तथा रात्रि का आरम्भ होने से पूर्व अर्थात पाँच बजे से प्रारंभ होकर आठ बजे तक चलती  है।

भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत का महत्व अत्यंत कल्याणकारी माना गया है। यहाँ वर्णित प्रदोष व्रत का अर्थ उस विशेष व्रत से है जो भक्तों द्वारा पापों से मुक्ति प्राप्त करने हेतु किया जाता है। इस अवसर पर मुख्य रूप से भगवान शिव, माँ पार्वती तथा नंदी सहित इनके समस्त परिवार को समर्पित की गई पूजा-अर्चना से उपासक अतिशीघ्र लाभान्वित होते हैं।

प्रदोष व्रत का महत्व व इसके लाभ

  • जो भी जातक इस विशेष दिन भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा अर्चना करता है, उसे निश्चित रूप से भोलेनाथ की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
  • भक्तों द्वारा प्रदोष व्रत के संकल्प को लेने व उसे पूर्ण करने से भगवान शिव अवश्य प्रसन्न होकर उस भक्त को जीवन के हर पग पर सफलता पाने का आशीर्वाद प्रदान करते है।
  • उपासकों द्वारा इस व्रत को विधि-विधान से करने के उपरान्त उन्हें स्वास्थ सम्बन्धी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त होती है व भगवान शिव अवश्य दीर्घ आयु तथा निरोगी काया का वरदान प्रदान करते हैं।
  • उपासकों द्वारा इस दिन भगवान शिव के स्मरण मात्र से ही नाम, यश, शौर्य, प्रतिष्ठा,व सम्मान आदि का सौभाग्य प्राप्त कर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
  • इस पावन दिन पवित्र मन से भगवान की उपासना करने से व्यापार में पदोन्नति प्राप्त कर आर्थिक लाभ को प्राप्त किया जा सकता है।
  • शास्त्रानुसार इस दिन जो भी जातक सच्चे मन से ईश्वर का नाम लेते हैं व भगवान के बताए गए मार्ग का अनुसरण करके है वे भविष्य से संबंधित नाना प्रकार की दुविधाओं के भय से सर्वदा मुक्त रहते हैं तथा वर्तमान जीवन में व्याप्त समस्त दुखों व कष्टों का सामना करने का सामर्थ्य प्राप्त करते हैं। 

प्रदोष व्रत व पूजा विधि

इस दिन विशेष रूप से दो समय पूजा की जा सकती है, एक सूर्योदय से पूर्व तथा दूसरी सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष व्रत की पूजा हेतु यह दोनों समय ही अनुकूलित हैं।

जो भी जातक भगवान को प्रसन्न करना चाहते हैं या उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं वे इस अवसर का लाभ लें व भगवान शिव की आराधना हेतु प्रदोष व्रत का संकल्प लें।

  • इस दिन प्रातःकाल निद्रा त्याग कर स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर व्रत संकल्प लें व भगवान शिव के समक्ष शीश नवाकर उनसे आशीर्वाद लें की मैं (आपका नाम) आपकी उपासना हेतु यह व्रत रखना चाहता हूँ कृपा कर मुझे सामर्थ्य प्रदान करें की मैं इस व्रत को क्रोध, पाप व लालच से मुक्त होकर यह पवित्र व्रत पूर्ण कर सकूँ।
  • पूजा के स्थान को गंगा जल से पवित्र कर लें।
  • सर्वप्रथम एक थाली तैयार कर दीप व धूप प्रज्वलित करें ।
  • भगवान शिव का अभिषेक कर चन्दन का तिलक या भस्म लगाकर “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते हुए जनेऊ व कलावा चढ़ाए।
  • भगवान का फल व अन्य प्रसाद सामग्री से भोग लगाकर  शिव की  भक्ति से ओत-प्रोत मंत्रों व प्रार्थनाओं का जप करें। (भगवान शिव की शक्तिशाली प्रार्थनाओं के संकलन हेतु आप हमारे द्वारा प्रकाशित की गई शिव नित्य आराधना को com के माध्यम से उपलब्ध कर सकते हैं)।
  • अंत में भगवान शिव की आरती कर परिवार के सभी सदस्यों को आरती देकर प्रसाद का वितरण कर इस शुभ पूजा विधि का समापन करें।

 निष्कर्ष:-

पंचांग अनुसार सनातन धर्म में प्रदोष व्रत को  वार के अनुसार सोम प्रदोष,रवि प्रदोष व शुक्र प्रदोष आदि के नाम से जाना जाता है जो पूर्ण रूप से भगवान शिव की भक्ति का पावन दिन होता है। इस दिन श्रद्धा व प्रेम भाव से भोलेनाथ की पूजा अर्चना करने से निश्चित रूप से मनुष्य को कार्य सिद्धि प्राप्त होती है।

 

 

योगिता गोयल

 

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