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होली, भारत में प्रचलित रंगोत्सव का अद्भुत समारोह

Posted By ServDharm

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Posted on February 14 2023

भारत के आध्यात्मिक जगत में त्यौहारों एवं पर्वों का विशेष स्थान रहा है। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होली का पर्व मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति की मुख्य विशेषता है की यहाँ (भारतीय परिवेश) में मनाये जाने वाले सभी त्यौहार समाज में उपस्थित मनुष्यों के व्यक्तिगत गुणों में सुधार करते हुए उन्हें प्रेम व एकता के मार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देते  हैं। होली मुख्य रूप से विश्व में हर्षोल्लास के साथ  प्रेम  व आपसी मित्रता का भाव संचार करने  हेतु एक अद्भुत त्यौहार है।

 भिन्न मान्यताएं

 भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार होली मनाये जाने के पीछे भिन्न-भिन्न मत हैं।

  • उत्तर पूर्व भारत में होलिका दहन से संबंधित मान्यता है की इस दिन भगवान कृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध किया। जिससे प्रसन्न होकर देव लोक ने उनका (श्री कृष्ण) पुष्पों से स्वागत कर प्रशंसा की तभी से मथुरा, वृंदावन व ब्रज में पुष्पों की होली खेली जाती है।
  • धार्मिक शास्त्रानुसार प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली एवं घमंडी राक्षस स्वयं को ईश्वर समझने लगा था। हिरण्यकश्यप के क्षेत्र विशेष में कोई भी ईश्वर का नाम नहीं ले सकता था यदि लेता तो उसे हिरण्यकश्यप के कहे अनुसार दण्ड भोगना पड़ता परन्तु उसी का बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था।

प्रह्लाद की इस अटूट भक्ति भावना से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने उन्हें ( प्रह्लाद) को अत्यधिक  कठोर दंड दिए, परन्तु भक्त प्रह्लाद ने ईश्वर की भक्ति का मार्ग नहीं त्यागा। दूसरी ओर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान युक्त कंबल प्राप्त थी जिससे की वह आग में कदापि भस्म नहीं होगी। हिरण्यकश्यप के आदेश से होलिका भक्त प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। किन्तु आंग में बैठने से पूर्व होलिका ने वरदान युक्त कम्बल से अपने भांजे अर्थात प्रह्लाद को ढक दिया जिससे होलिका तो जल गई परन्तु भक्त प्रह्लाद बच गए। 

इसी कारण होलिका दहन बुराई पर अच्छाई  की जीत  का पर्व अर्थात होली  मनाया जाने लगा।

  • दक्षिण भारत में मान्यता है की इस विशेष दिन ही कामदेव की पत्नी रति द्वारा आग्रह करने पर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जन्म प्रदान किया।

यहाँ वर्णित उक्त कथाओं में एक बात सामान्य रूप से देखी जा सकती है की होली का पावन त्यौहार मुख्य रूप से बुराई पर अच्छे की जीत, असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है। अतः यह पर्व भारतीय समाज को एकता के सूत्र में बाँधने व आपस में द्वेष, ईर्ष्या व शत्रुता को भुलाकर प्रेम भाव का विस्तार करने का विशेष पर्व है।

प्रकृति व होली का संबंध

भारत वर्ष में बसंत ऋतु में मनाया जाने वाला लोकप्रिय रंगोत्सव मुख्य रूप से बसंत ऋतु के आगमन का संदेश वाहक है, जिस कारण इसे वसंतोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। इन दिनों प्रकृति अपनी चरम अवस्था पर होती है। प्रकृति स्वयं इस विशेष दिन का स्वागत करती है। इस समय पेड़-पौधे, पशु-पक्षी,जीव-जन्तु व समस्त प्राणी हर्ष एवं उल्लास से परिपूर्ण होते हैं। खेतों में सरसों के पीले फूल इस प्रकार खिलते हैं मानो प्रकृति स्वयं पृथ्वी पर पीला रंग बरसा रही हो। वनों में वनस्पति का एक अद्भुत स्वरुप दिखाई देता है। बाग-बगीचों में पुष्पों की बहार सी छा जाती है क्षण भर के लिए हवा चलने पर ऐसा लगता है मानो होली अर्थात बसंतोत्सव का स्वागत करने हेतु प्रकृति खुशी से मग्न होकर नृत्य कर रही हो, जिसका आप स्वयं अनुभव करते हो। इस समय पृथ्वी को यदि आकाश से देखा जाए तो ऐसा लगता है मानो प्रकृति स्वयं रंगों से खेल रही हो। इन्ही समस्त कारणों चलते  निश्चित रूप से इसे नए संवत के प्रारम्भ का संकेतक कहा है सकता है।

 होली का आधुनिक रूप

भारत वर्ष में  लोग आदिकाल से होली का पर्व ख़ुशी व आनंद के साथ मानते आए हैं। वर्तमान समय में मनुष्य अपनी आवयशकता के अनुसार भारतीय पारम्परिक रीति-रिवाजो व पूजा-पद्धति को अपने अनुकूल बना रहे हैं, जिसे प्रगति, उन्नति, विकास व उत्थान का परिणाम समझा जाता है। भारतीय संस्कृति में हुए इन परिवर्तनों को कथाकथित रूप से आधुनिक विकास का नाम दिया जाता है।

इसी प्रकार आज जो होली का स्वरुप देखने को मिलता है वो होली का परिवर्तित रूप है।

भारत के अनेक क्षेत्रों में होली की पूजा विधि से लेकर समारोह तक अनेक बदलाव देखने को मिलते हैं।

अब प्राकृतिक रंगों के स्थान पर रासायनिक रंगों का प्रचुर मात्रा में उपयोग होने लगा है, जो चरम रोग सम्बंधित स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देती है।

पूर्व समय में, महीनों से एकत्रित की गई लकड़ियों के द्वारा होलिका दहन किया जाता था वहीं अब कई जगह समय का आभाव होने के कारण तत्काल पेड़ों को काटकर लकड़ी उपलब्ध की जाती है।

ठंडाई व अन्य पेय पदार्थ का स्थान धूम्रपान व मदिरा ने ले लिया। जो इस विशेष पर्व की सार्थकता को नीरस  बनाने की ओर अपनी भूमिका निभा रही है। धार्मिक प्रार्थनाओं, भजनों, लोकगीत व नृत्य का स्थान फ़िल्मी जगत ने धारण कर लिया है।

अतः हमें इस पर्व की परंपरा को बनाये रखते हुए अपने आधुनिक जीवन की ओर अग्रसर होना चाहिए क्योंकि इन दोनों तत्वों के संतुलन से ही मानवीय जीवन का उद्धार होता है।

ServDharm  भारतीय परंपरा को बनाये रखने हेतु व इस पावन अवसर को और भी स्मरणीय बनाने हेतु, अद्भुत धार्मिक प्राथनाओं का संग्रह  Festive Box (फेस्टिव बॉक्स) व Holi Box (होली बॉक्स)  लेकर आया है जिसमें कृष्ण चालीसा, विष्णु चालीसा,लक्ष्मी चालीसा गणेश चालीसा, सरस्वती चालीसा, राम चलिसा, शनि चालीसा, भैरव चालीसा, नवग्रह चालीसा,दुर्गा चालीसा, हनुमान चालीसा, साईं चालीसा आदि सम्मलित हैं। जिनके माध्यम से आप भगवान् की स्तुति कर सकते है। Servdharm की ये विनर्म प्रस्तुति न केवल स्वयं के उपयोग के लिए उपयोगी है अपितु यह अपने बड़ों व मित्रों को उपहार देने हेतु भी  एक उत्तम उपाए है। जो इस पर्व की सार्थक्ता से जुड़ने का प्रयास  करता है।

होली पर्व का मुख्य उद्देश्य

होली के इस महान अवसर से सम्बंधित विश्व में अनेक मान्यताएँ विद्यमान हैं परन्तु इसका उद्देश्य मानवीय जीवन को उन्नति के मार्ग पर ले जाना है। यह समाज में व्याप्त बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतिक है। इस दिन लोग आपसी शत्रुता को भुलाकर मित्रता का हाँथ आगे बढ़ाते हैं।

इस दिन समस्त लोगों को सामाजिक बुराई, पाप, क्रोध, ईर्ष्या, कलह का नाश कर आपसी प्रेम भावना का संचार करना चाहिए व ईश्वर की भक्ति कर परिवार व अपनों के साथ समारोह का आनंद लेना चाहिए।

भारतीय संस्कृति व यहाँ की धार्मिक कथाओं, लोक संगीत,नृत्य,लोक गीत व नाट्य आदि का योगदान लेते हुए आध्यात्मिक मार्ग पर चलना चाहिए।

 समारोह

भारत में विभिन्न क्षेत्रों में होली को अलग-अलग रूप में  दो दिन मनाया जाता है प्रथम दिन को होलिका दहन के नाम से जाना जाता है तथा दूसरे दिन धुलेडी के नाम से जाना जाता है। इस विशेष दिन की तैयारी कई महीनों पहले से प्रारम्भ हो जाती है।

लोग लकड़ियाँ, घास-फूस व उपले आदि को एक मोटे लकड़ी के तने के आस-पास वृत आकर में  निर्धारित स्थान पर एकत्रित करने लगते हैं।

  • होली के प्रथम दिन अर्थात होलिका दहन के दिन सर्वप्रथम प्रातःकाल में निद्रा त्याग कर स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
  • तत्पश्चात पूजा थाली तैयार करें जिसमें जल से भरा लोटा, सात प्रकार के पकवान, चन्दन,गुलाल व कच्चा सूत आदि सामग्री रख लें। 
  • संध्या के समय सूर्यास्त से पहले होलिका पूजन के लिए पास के मंदिर या जहां होलिका दहन का कार्यक्रम होना है वहाँ  जाए व सच्चे मन से पूजा अर्चना कर घर की ओर प्रस्थान करें।
  • सूर्यास्त के पश्चात होलिका दहन हेतु निर्धारित स्थान पर एकत्रित होकर पंडित जी द्वारा उन लकड़ियों में अग्नि दें व किनारों से अन्न की बाल को भून लें और घर वापस लाकर समस्त परिवार को प्रसाद रूप दें। इस प्रकार होलिका दहन की समाप्ति करें।
  • होली का दूसरा दिन अर्थात धुलेडी इस दिन रंगों से होली खेली जाती है व गुलाल उड़ाया जाता है  जिस कारण इसे रंगोत्सव भी कहा जाता है।
  • भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इसे अलग अलग प्रकार से मनाया जाता है वृन्दावन व बरसाने में फूलों से होली खेली जाती है वहीं दक्षिण भारत में रंगों से व कहीं लट्ठमार आदि होली खेली जाती है।
  • रंगोत्सव के इस विशेष दिन सभी बच्चे, वृद्ध व नौजवान आनंदोल्लास से परिपूर्ण होते हैं। दक्षिण भारत में लोग इस दिन सुबह अपने मित्रों के साथ मण्डली बनाकर गीत जाते हुए मंदिर की ओर निकल पड़ते हैं वहाँ नृत्य संगीत आदि कर अन्य लोगों को गुलाल लगा कर मित्रता का भाव संचार करते हैं, इस प्रकार यह दूसरे पहर तक चलता है। अंत में सब स्नान आदि कर भोजन करते है व इस प्रकार होली के दूसरे दिन की समाप्ति होती है।

 निष्कर्ष :-

भारतीय परिवेश में होली एक ऐसा पर्व है जो  हिन्दू  धार्मिक संस्कृति, रीति-रिवाजों व पौराणिक कथाओं को आगे बढ़ाते हुए लोगो के  मानवीय गुणों को प्रबल बनता है व समाज को प्रेम के एक  पवित्र  सूत्र में बांधता है।

 

योगिता गोयल

 

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