भगवान शिव को समर्पित 16 सोमवार का महत्व
•Posted on February 07 2023
सनातन धर्म की संस्कृति में प्रत्येक दिन को पर्वों व व्रतों के माध्यम से अलंकृत किया गया है। यह व्रत मनुष्य को जीवन के प्रति सकारात्मक ऊर्जा व भावी जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। हमारी संस्कृति व परंपरा की इसी जीवंतता व सार्थकता को बनाए रखने हेतु प्रत्येक दिन के महत्व को समझते हुए भगवान शिव को समर्पित 16 सोमवार का वर्णन किया गया है। यह एक वर्ष में अलग-अलग समय अवधि के अनुसार किये जाते है। कुछ लोग इसे प्रदोष तिथि के अनुसार मनाते हैं, कुछ श्रावण माह के प्रारंभ में तो कुछ लोग प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव के स्मरण हेतु व्रत रखते हैं। माना जाता है जो भी उपासक भगवान शिव के आशीर्वाद को प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त करना चाहता है उसके लिए 16 सोमवार के व्रतों का संकल्प पूर्ण करना अत्यंत उपयोगी व कल्याणकारी सिद्ध होता है।
16 सोमवार व्रत के महत्त्व
भगवान शिव को समर्पित 16 सोमवार के व्रत 7 वर्ष से अधिक आयु वाले भक्तों द्वारा रखा जाता है
- जो भी जातक 16 सोमवार को भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा अर्चना करता है, उसे निश्चित रूप से भोलेनाथ की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
- कन्या द्वारा सच्चे मन से किये गए 16 सोमवार के व्रत व उद्यापन से उसे गुणवान वर की प्राप्ति होती है।
- भक्तों द्वारा 16 सोमवार के व्रतों के संकल्प को लेने व उसे पूर्ण करने से भगवान शिव अवश्य प्रसन्न होकर उस भक्त को जीवन के प्रत्येक पग पर सफलता पाने का आशीर्वाद प्रदान करते है।
- भक्तों द्वारा इस व्रत को विधि-विधान से करने के उपरान्त उन्हें स्वास्थ सम्बन्धी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त होती है, व भगवान शिव अवश्य दीर्घ आयु तथा निरोगी काया का वरदान प्रदान करते हैं।
- जो उपासक व्रत रखने में असमर्थ हैं वे श्रद्धा भाव से शिवलिंग पर चढ़ाये गए जल मात्र से भगवान शिव को प्रसन्न कर व्यापार में पदोन्नति प्राप्त कर आर्थिक लाभ को प्राप्त किया जा सकता है।
- जो भक्त 16 सोमवार के व्रतों को पूर्ण करते है वे निश्चित रूप से समस्त कार्यों में एकाग्र रहकर सफलता प्राप्त करते हैं।
पूजा विधि एवं सामग्री
जो भी जातक भगवान को प्रसन्न करना चाहते हैं या उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं वे इस अवसर का लाभ लें व भगवान शिव की आराधना हेतु 16 सोमवार के व्रतों को पूर्ण करें ।
- इस दिन प्रातःकाल उठकर स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर व्रत संकल्प लें व भगवान शिव के समक्ष शीश नवाकर उनसे आशीर्वाद लें की मैं (आपका नाम) आपकी उपासना हेतु यह व्रत रखना चाहता हूँ कृपा कर मुझे सामर्थ्य प्रदान करें की मैं इस व्रत को क्रोध, पाप व लालच से मुक्त होकर व्रत पूर्ण कर सकूँ।
- एक पूजा थाली तैयार करें जिसमें जल से भरा लोटा, चन्दन, कुमकुम, कपूर केसर, पंचामृत , धुप-दीप, पुष्प, बेलपत्र, फल व प्रसाद आदि सामग्री रख लें।
- तत्पश्चात पूजा के स्थान को गंगा जल से पवित्र कर लें दीप व धूप प्रज्वलित करें।
- भगवान शिव का अभिषेक कर चन्दन का तिलक या भस्म लगाकर “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते हुए जनेऊ व कलावा चढ़ाए।
- भगवान का फल व अन्य प्रसाद सामग्री से भोग लगाकर शिव की भक्ति से ओत-प्रोत मंत्रों व प्रार्थनाओं का जप करें। (भगवान शिव की शक्तिशाली प्रार्थनाओं के संकलन हेतु आप हमारे द्वारा प्रकाशित की गई शिव नित्य आराधना को servdharm.com के माध्यम से उपलब्ध कर सकते हैं)।
- अंत में भगवान शिव की आरती कर परिवार के सभी सदस्यों को आरती देकर प्रसाद का वितरण कर इस शुभ पूजा विधि का समापन करें। इस प्रकार प्रत्येक सोमवार को करें और 17 वे सोमवार को उद्यापन कर व्रत को सफल रूप प्रदान करें। यहाँ उद्यापन का अर्थ उस प्रक्रिया से है जो 17 वे दिन विशेष पूजा करने व कथा का श्रवण करने के उपरान्त ब्राहम्णो को भोजन कराना व दान दक्षिणा दी जाती है। उद्यापन के उपरान्त ही 1 से 16 सोमवार तक समर्पित की गई भक्ति को पूर्ण व्रत संकल्प कहा जा सकता है।
निष्कर्ष जो भी जातक भगवान शिव की अनुकम्पा प्राप्त करना चाहते हैं या अपने जीवन में व्याप्त कष्टों का निवारण करना चाहते हैं उनके लिए सच्चे भाव से 16 सोमवार का व्रत करना अत्यंत लाभकारी है।
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