Makar Sankranti 2023: जप,तप,दान,स्नान एवं तर्पण का पर्व मकर संक्रांति 2023
•Posted on January 13 2023
भारतीय हिन्दू पंचांग के अनुसार मकर संक्रांति इस वर्ष माघ माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। यह एक ऐसा त्योहार है जो देश भर में अलग-अलग नामों एवं रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। यह समारोह भारतीय विविधता की परिभाषा को प्रबल बनाता है।
यहाँ ‘मकर’ शब्द का अर्थ मकर राशि है तथा ‘संक्रांति’ शब्द का अर्थ संक्रमण से है जिसका अर्थ है सूर्य का मकर राशि में संक्रमण। जिसे हिंदू धर्म के अनुसार शुभ अवसरों का सूचक माना जाता है। मुख्यतः मकर संक्रांति मनाने के पीछे यह मान्यता है कि किसान अपनी अच्छी फसल के लिए भगवान को धन्यवाद देकर उनकी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं। इसलिए मकर संक्रांति को फसलों एवं किसानों के त्यौहार से भी जाना जाता है।
विभिन्न रूपों में हर्षोल्लास के साथ मनाये जाने वाला मकर संक्रान्ति स्नान-दान का पर्व है। इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व होता है।
संक्रांति का त्योहार, सूर्य के उत्तरायण( उत्तरीगोलार्द्ध की ओर आने पर) होने पर मनाया जाता है। इस पर्व की विशेष बात यह है कि यह अन्य त्योहारों की तरह अलग-अलग तारीखों पर नहीं, बल्कि प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को ही मनाया जाता है।
देशभर में इस पावन पर्व हेतु विभिन्न मान्यताएं प्रख्यात हैं :-
ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति का पर्व सूर्य व शनि के मिलन के रूप में मनाया जाता है। सूर्य जब मकर राशि यानी शनिदेव की राशि में प्रवेश करते हैं तो ऐसा माना जाता है की पौष मास में जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है तब हिंदू मकर संक्रांति मनाते हैं।
शास्त्रानुसार इस दिन भगवान सूर्य देव अपने बेटे शनि से मिलने के लिए उनके घर पर जाते हैं। इसलिए इस दिन भक्त भगवान शनि व सूर्य को प्रसन्न करने हेतु विधि-विधान से पूजा अर्चना करते है जिससे उन्हें समस्त कष्टों एवं बाधाओं से मुक्ति प्राप्त होती है। इस अवसर को और भी स्मरणीय बनाने के लिए Servdharm उन समस्त उपासकों हेतु भगवान शनि की उपासना करने हेतु शनि चालीसा की विशेष प्रस्तुति लेकर आया है जिसमें शनि चालीसा के साथ -साथ शनि आरती भी सम्मिलित है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे- पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में मिल गईं थी। इसलिए इस दिन गंगा माँ की आराधना एवं गंगा स्नान का अत्यधिक महत्व है। भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के पावन दिन ही अपने प्राण त्याग दिए थे इसलिए धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य के उत्तरायण के समय देह त्याग करने या मृत्यु को प्राप्त होने वाले लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
धार्मिक कथाओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही भगवान विष्णु ने असुरों का अंत किया था। इस दिन को सभी नकारात्मकताओं के अंत का दिन भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना का भारतीय संस्कृति में अत्यधिक महत्व है।
मकर संक्रांति पर स्नान-दान
इस पर्व पर समुद्र में स्नान के साथ-साथ गंगा, यमुना, सरस्वती, नमर्दा, कृष्णा, कावेरी आदि सभी पवित्र नदियों में स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देने से पापों का नाश तो होता ही है साथ ही पितृ भी तृप्त होकर अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं यहां तक कि इस दिन किए जाने वाले दान को महादान की श्रेणी में रखा गया है। वैसे तो सभी संक्रांतियों के समय जप-तप तथा दान-पुण्य का विशेष महत्व है किन्तु मेष और मकर संक्रांति के समय इसका फल सर्वाधिक प्रभावशाली कहा गया है उसका कारण यह है कि मेष संक्रांति देवताओं का अभिजित मुहूर्त होता है और मकर संक्रांति देवताओं के दिन का शुभारंभ होता है। इस दिन सभी देवता भगवान श्री विष्णु और मां श्रीमहालक्ष्मी का पूजन-अर्चन करके अपने दिन की शुरुआत करते हैं अतः श्रीविष्णु के शरीर से उत्पन्न तिल के द्वारा बनी वस्तुएं और श्रीलक्ष्मी के द्वारा उत्पन्न इक्षुरस अर्थात गन्ने के रस से बनी वस्तुएं जिनमें गुड़-तिल का मिश्रण हो उसे दान किया जाता है।
ऊनी कंबल, अभावग्रस्त को वस्त्र विद्यार्थियों को पुस्तकें पंडितों को पंचांग आदि का दान भी किया जाता है। अन्य खाद्य पदार्थ जैसे फल, सब्जी, चावल, दाल, आटा, नमक आदि जो भी यथा शक्ति संभव हो उसे दान करके संक्राति का पूर्ण फल प्राप्त किया जा सकता है पुराणों के अनुसार जो प्राणी ऐसा करता है उसे विष्णु और श्रीलक्ष्मी दोनों की कृपा प्राप्त होती है।
तीर्थों और देवताओं का महाकुंभ मकर संक्राति
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और माघमाह के संयोग से बनने वाला यह पर्व सभी देवों के दिन का शुभारंभ होता है। इसी दिन से तीनों लोकों में प्रतिष्ठित तीर्थराज प्रयाग और गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन संगमतट पर साठ हजार तीर्थ, नदियां, सभी देवी-देवता, यक्ष, गन्धर्व, नाग, किन्नर आदि एकत्रित होकर स्नान, जप-तप, और दान-पुण्य करके अपना जीवन धन्य करते हैं। तभी इस पर्व को तीर्थों और देवताओं का महाकुंभ पर्व कहा जाता है।
शिव द्वारा सूर्य की महिमा का वर्णन
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