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धरती माँ के सम्मान हेतु प्रतिदिन की जाने वाली भूमि वंदना

Posted By ServDharm

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Posted on January 21 2023

सनातन धर्म एक ऐसा धर्म है जिसने मानव के विकास एवं उत्थान हेतु पंचमहाभूत को संपूर्ण भौतिक सृष्टि का मूल आधार मानते हुए प्रकृति के समस्त तत्वों; पेड़, पौधे, जीव, जन्तु, आकाश, धरती, जल, वायु, पर्वत, पठार आदि को ईश्वर का स्वरुप माना है।  हमारे धर्म की यह विशेषता है की यहाँ प्रत्येक उस वस्तु को माँ के समान  माना गया है जो व्यक्ति का पालन-पोषण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं,  इस श्रेणी में  पंचमहाभूत का सर्वोपरि तत्व माँ धरती का स्थान है। धरती माता जो समस्त मनुष्य जाति को जन्म से मृत्यु तक अपने आँचल की शीतल छाया प्रदान कर अपनी गोद में शरण देती हैं।

शास्त्रानुसार व्यक्ति को प्रत्येक उस वस्तु व शक्ति का सम्मान करना अनिवार्य समझा गया जो इस सृष्टि के संचालन में अपना योगदान अंकित करता है। शास्त्रों में वर्णित  इसी शिक्षा का अनुसरण करते  हुए ब्रह्मांड में व्याप्त दिव्य शक्ति माँ धरती द्वारा न्यौछावर की गई उदारता  का आभार व्यक्त  करने हेतु  हम क्षमा मंत्र या गायत्री मंत्र के माध्यम से उनकी सह्रदय  वंदना  करते हैं।

 हमारे पौराणिक ग्रंथ, वेद व पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों में इस तथ्य का वर्णन मिलता है की किस प्रकार ईश्वर ने स्वयं को प्रकृति का ही अंग स्वीकार किया है। संपूर्ण जगत को सृष्टि के संचालन का मूल मंत्र ( किसी भी रूप में प्रकृति की रक्षा)  का ज्ञान दिया है।

                                        हे मनुष्य तू मुझे कहाँ खोजता फिरता है।

                                       मैं तो प्रकृति के कण - कण में विराजता हूँ।

                             मैं ही तो सूर्य का तेज हूँ, मैं ही तो नदियों का पवित्र जल हूँ,

           मैं ही तो चन्द्रमा की चाँदनी हूँ व मैं ही तो मानव के भीतर समाहित मानवता का अंश हूँ। 

                                    हे मनुष्य तेरे द्वारा प्रकृति को  दिए गए सम्मान;

 भूमि वंदना, सूर्य अर्घ, गौ पूजन, गंगा पूजन, तुलसी पूजन, पशु पूजन आदि के समर्पण भाव से ही

                                             तू मुझे प्रसन्नचित्त कर लेता है।

                                        हे मनुष्य तू मुझे कहाँ खोजता फिरता है।

                                      मैं तो प्रकृति के कण - कण में विराजता हूँ।

मनुष्य द्वारा भूमि वंदना कर जहाँ प्राकृतिक लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं वहीं वैज्ञानिक तथा आयुर्वेदिक लाभ प्राप्त कर मनुष्य नकारात्मक विचारों से मुक्ति पा सकता है। यह एक ऐसी साधना है जिससे मनुष्य ईश्वर को प्रसन्न कर मनोवांछित फल, उत्तम स्वास्थ्य एवं भौतिक कल्याण की कामना कर सकता है।

कैसे करें भूमि वंदना:-

प्रातःकाल निद्रा त्याग कर सर्वप्रथम कर दर्शन करें तत्पश्चात  भूमि क्षमा मंत्र का जप करें (ध्यान रहे इस मंत्र  को करने के उपरान्त ही अपने पैरों को धरती से स्पर्श करें) 

भूमि क्षमा मंत्र                                          

                                       ॐ समुद्र वसने देवी पर्वतस्तन मंडिते |

                                      विष्णुपत्नीं नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व में ||

अर्थ:-  समुद्र को वस्त्र की भाँति धारण करने वाली, पर्वत के देह समान व भगवान विष्णु की पत्नी 'माँ धरती' , मुझे क्षमा करें में आपको अपने पैरों से स्पर्श करने जा रहा हूँ।

तत्पश्चात माँ धरती को स्पर्श कर माथे से लगाकर अपना दाहिना और फिर बायां पैर शय्या से नीचे रख धरा से स्पर्श करें।  इस प्रकार साधक प्रतिदिन अपने दिन का शुभारंभ कर सकता है। आप चाहें तो सप्ताह में २-३ बार अन्यथा इच्छानुसार भूमि गायत्री मंत्र का जप अवश्य करें।

कर दर्शन:-  प्रातःकाल अपनी हथेलियों को देखने की क्रिया को ही कर दर्शन कहते हैं।

पंचमहाभूत :- दर्शनशास्त्र के अनुसार पंचमहाभूत का अर्थ उन पाँच तत्वों से है जिससे मिलकर मानव शरीर का निर्माण संभव है इसमें पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु,आकाश आदि सम्मिलित हैं। 

 

योगिता गोयल

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