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भारतीय सनातन संस्कृति में तिलक का महत्व

Posted By ServDharm

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Posted on January 30 2023

हमारे सनातन धर्म में प्रत्येक शुभ कार्य से पूर्व  तिलक लगाने की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। हमारे धार्मिक ग्रंथ गरुण पुराण, गर्ग संहिता एवं विष्णु संहिता में तिलक के महत्व के बारे में वर्णन मिलता है। भारतीय संस्कृति में तिलक (टीका) किसी भी प्रकार की पूजा-हवन,अनुष्ठान, मांगलिक कार्य, धार्मिक समारोह, विवाह, कथा ,व्रत व अन्य शुभ कार्य में सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से लगाया जाता है। इसे प्रायः शरीर के १२  विभिन्न अंगों जैसे; मस्तक, ललाट, कंठ, ह्रदय व नाभि आदि पर लगाया जाता है।

कहा जाता है,

                                               ''स्नान दाने जपे होमो देवता पितृकर्म च।

 तत्सर्वं निष्फलं यान्ति ललाटे तिलकं बिना।।''

अर्थात तिलक के बिना किया गया तीर्थ, जप ,दानकर्म ,स्नान यज्ञ, श्राद कर्म आदि का फल प्राप्त नही होता।

हिन्दू धर्म में तिलक को न केवल आस्था का प्रतिक माना जाता है, अपितु इसका प्रतिदिन प्रयोग आपके उत्तम दिनचर्य का परिचायक भी सिद्ध होता है। धार्मिक पुराणों के अनुसार तिलक यदि अनामिका से लगाया जाए तो मन मस्तिष्क को शांति मिलती है जिसे प्रायः दैविये शक्ति व अपने से बड़ों के लिए प्रयोग किया जाता है, यदि  यह व्यक्ति द्वारा मध्यमा से स्वयं को लगाया जाए तो आयु में वृद्धि होती है। तर्जनी से किया गया तिलक पितरों को मोक्ष प्राप्ति के लिए उत्तम बताया गया है। वहीं अंगूठे से किया गया तिलक अपने से छोटों को आशीर्वाद देने  के भाव से किया जाता है। इस प्रकार विभिन्न उँगलियों से किया गया तिलक विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति की कल्पना से किया जाता है।

भारतवर्ष में तिलक अक्सर मस्तक पर लगाया जाता है।  कहा जाता है की मस्तक पर जंहा तिलक लगाया जाता है वहां आत्मा अर्थात हम स्वयं स्थित होते है। जिसे हम अपने चिंतन-मनन का स्थान भी कहते हैं, तथा इस स्थान पर तिलक धारण करने से बीटाएंडोरफिन व सेरेटोनिन नामक रसायनों का स्त्राव संतुलित मात्रा में होने लगता है जिससे उदासीनता व निराशा के भावों का नाश होकर मस्तिष्क को शांति प्राप्त होती है।

जिस प्रकार तिलक लगाने का ढंग एवं स्थान का महत्व भिन्न है उसी प्रकार विभिन्न द्रव्यों से बने तिलक की उपयोगिता व महत्व भी अलग- अलग हैं। सौभाग्यसूचक द्रव्य जैसे चन्दन, केसर,कुमकुम, हल्दी, भस्म आदि का तिलक करने के पश्चात् उस पर सम्पन्नता का प्रतीक अक्षत लगाने से सात्विक एवं तेजपूर्ण होकर आत्मविश्वास में अभूतपूर्व वृद्धि होती है, मन में निर्मलता,शांति एवं संयम आदि का वास होता है।

 तिलक लगाने के उपरांत प्राप्त किये जाने वाले लाभ

  • माथे पर तिलक लगाने से शांति व ऊर्जा प्राप्त होती है।
  • तिलक लगाने से व्यक्तित्व में सात्विकता झलकती है।
  • कार्य के प्रति एकाग्रता उत्पन्न होती है।
  • सौभाग्य में वृद्धि होती है।
  • स्वभाव में सहजता देखने को मिलती है।
  • अनेक रोगों जैसे सिर दर्द , तनाव आदि से  मुक्ति प्राप्त होती है।

क्या करें व क्या न करें :

  • कनिष्ठा से कदापि तिलक न लगाएं व न ही लगवाएं।
  • तिलक लगते समय ध्यान रहे आपका सर ढाका हो या अपनी हथेली क्षण भर के लिए सिर पर रख लें।
  • तिलक करते समय इन मंत्रों का जाप किया जा सकता है;

केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम ।

पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।

 २

कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।

ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।

ॐ केशवाय नमः।

४ 

ॐ नारायणाय नमः।

ॐ गोविन्दाय नमः।

६ 

ॐ वामनाय नमः।

ॐ श्रीधराय नमः।

८ 

ॐ दामोदराय नमः।

९ 

ॐ वासुदेवाय नमः। 

 

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